शुक्रवार, 11 दिसंबर 2015

उदास शाम

उदास शाम
उतर आती है
हर रोज आँगन में
अपने स्याह आँचल में
लेकर कुछ पीले पड़े
तपती दुपहरी के फूल
घर लौटते
चहचहाते पक्षियों के
कुछ टूटे हुए पंख
तूफानों की सरपरस्त
हवा के झोंकों में
उड़ते कुछ घास के तिनके
और अलगनी पर सूखते
तार-तार होते
कपड़ों के पैबंद...

छोड़ जाती है
मेरे दरवाजे पर
तमाम दुपहरी की
खींझ, गुस्सा और
अकेलापन
और लौट पड़ती है
धानी चुनर ओढ़े
साँवली बदली के साथ
रात के गहरे अंधेरे में
और मैं
घड़ी की सुइयों से बनी
बुहारी से
सब झाड़ बुहार कर
लगा देती हूँ ढेर
अपनी बगीची में
और लांघ जाती हूँ
शाम को
निशब्द, निर्विकार
बीत गये है
अनंत दिन
इसी तरह...
शाम हर रोज
आती है कभी
धुंए के साथ,
रह-रह कर चमक उठती
चिंगाारियों के साथ,
राख की उड़ती कालिमा,
पैरों की ठोकरों से
झरते पत्तों के साथ...
और मेरा मौन
बढ़ाता रहता है
शब्दों से अंतराल
कभी-कभी हो जाती हूँ
बुहारते दुःखों को देख
निश्चेष्ट ..........
फिर सोचती हूँ
कभी तो आएगी
सांझ अपनी हथेलियों में
तितलियों के रंगों को दाब
तूफान के बाद आती
बारिष की नन्हीं बूंदों संग
कामना के बीज
मेरी बगीची में डाल
उम्मीदों की कलम बोने
तब मेरा मौन
आलाप में बदल जाएगा
और सुरों की विरासत में
एक अध्याय
जुड़ने को आतुर हो जाएगा
तब शायद
भोर की किरणें
आलोकित कर देगी
मेरी कोठरी के
धुंध भरे कोनों को...।
.......................................स्वर्णलता

 अनुभूति में प्रकाशित ...


गीत खामोशी का...

तमाशों और
आडम्बरों से भरी
इस बंजर भूमि पर
रोप दिए है मैंने
घुन खाए
कुछ उम्मीदों के बीज
और
हहराती
पारिजात की
एकनन्हीं डाली
सींचना चाहती हूँ
जिसे मैं
पलकों पर ठहर आई
एक चमचमाती
नन्हीं बूँद से
जो इंतजार में है
सपनों की बदली के...
जो आकर
रख ले जाए
हथेलियों में इसे
और बरसा दे
मेरे आँगन की
बंजर धरा पर
तब शायद
फूट पडे
कोमल कोपलें
कल्पनाओं की
और वीरान होती
बगीची में
गा उठें
कोयल, पपीहा,
भ्रमर, कोई गीत
झुलस चुकी
किरणों की तपिश से
अनछुई खामोशी का-----।   ........ स्वर्णलता

(अपनी माटी ... जुलाई-सितम्बर २०१४ अंक में प्रकाशित )


बुधवार, 13 अगस्त 2014

अर्धत्व

अधूरेपन में छिपी है
एक चाह,
एक ललक
अपूर्णता की गहनता में
समाई है एक आशा
कुछ प्राप्त करने की
क्योंकि
अर्धत्व में छिपा है
सौंदर्य
तभी तो
अर्धचन्द्र पर लिखी जाती है
कविताएं
अधूरे प्रेम की कहानियां
होती है
जग में मशहूर
अर्धसत्य के
खोजे जाते हैं साक्ष्य
और
अर्धत्व की पूर्णता
पूजित होती है
नारी-नटेश्वर में ...।
                     ---------- स्वर्णलता

                           

गुरुवार, 16 जनवरी 2014

सुकरात


अमृत की  चाह में
कितने घूंट
हलाहल का पान
किन्तु
नीलकंठ नहीं बन पाई...

विष मेरे हलक से
नीचे उतर चुका था
किन्तु नहीं बना
यह कृष्ण  का
चरणामृत...
जिसे पीकर मीरा
भक्ति  के चरम को
छू गई...

इस गरल ने
मुझे क़र दिया
समाप्त
और मृत्युदंड को प्राप्त
मैं बन गई
सुकरात.........!!!
                                   ---स्वर्णलता

                             

मंगलवार, 19 नवंबर 2013

प्रतिमूर्ति...

वक्त के थपेड़ों  ने
कितना निर्मम
बना दिया है मुझे
बड़ी बेदर्दी से
मैं अपने
अरमानों का गला
घोंट देती हूँ ,,,

कितनी निर्मोही
हो गई हूँ कि
अपने सपनों के
पंख कतरकर
उन्हें पैरों  तले
रौंदकर
आगे बढ़ जाती हूँ ,,,

किसी परिस्थिति
के हाथों
कमजोर न पड़ जाऊं
इसलिए पलकों क़ी
कोरों पर
आंसुओं को
झलकने भी नहीं देती

फिर भी ............
कहते सुना हैं ,
लोगों  को
कि  स्त्री,
दया,ममता
और स्नेह क़ी
प्रतिमूर्ति है....      ...स्वर्णलता

 अनुभूति में प्रकाशित ...........
                               

यादों का जंगल


सोच के दायरे में गुम
मैं अकसर
यादों के जंगल में
भटक जाया करती हूँ
उन दरख्तों को ढूँढने
जिनकी छांह में
कभी
आसरा पाया था मैंने
पर
हताश होकर
खोज लेती हूँ
एक तनहा पगडण्डी
क्योंकि
इस गहन कानन में
पतझड़ का मौसम है
और
समझाइशों की
डालियों ने
मुझे पहचानने से
इंकार कर दिया
बातों के फूल
और
एहसास की पत्तियां
रौंदी जा रही थी
पैरों तले
ऐसे में मेरा
लौटना ही
बेहतर है ,,,,,,,,,,   स्वर्णलता

उजास की आशा...

 विषादो के अंधियारे
तनहाइयों  की दीवारे
और असंगत से लगनेवाले
प्रश्नों की झाडियां
इन सब के बीच
आशा के जुगनू
हौले-हौले से डोलते
भ्रमित
मेरे आसपास
इस चाहत के साथ
स्पर्श मेरा
करें... न करें...!!!

क्या पता मेरे अंतस के
गहन अंधियारे में
धुंए के सेतुओं से आबद्ध
ह्रदय छूकर
कहीं उनकी
जगमगाहट
न खो जाये
कहीं वह भी
अपना आस्तित्व
न खो दें
इसलिए ,,,
मंडराकर मेरे आसपास
लौट जाते हैं
वे जुगनू
और मैं
ताकती रहती हूँ  उन्हें
आते व जाते हुए
उनकी झिलमिलाहट के साथ
जो तनिक सी रोशनी
का आभास
मुझे होता था
वह भी
छीन जाता है  मुझसे
और मेरी आँखें
निस्तब्ध सी
घुप्प अंधकार में
भटकती रहती हैं
नये उजास की आशा के साथ....!!!
                                                 ---  स्वर्णलता